हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, हैदराबाद डेक्कन/मजूमा उलमा वा ख़तबा हैदराबाद डेक्कन के संस्थापक और संरक्षक मौलाना अली हैदर फ़रिश्ता ने मंदिर और मस्जिद विवादों पर नए मामले दायर करने पर रोक लगाने के भारतीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सराहना करते हुए कहा कि यह कदम यह न्याय की बहाली और सांप्रदायिकता के खात्मे की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से भारतीय लोगों का न्यायपालिका में विश्वास बहाल होने की उम्मीद जगी है।
मौलाना ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला उन पूजा स्थलों से संबंधित है जिनके बारे में विवाद चल रहे हैं, जैसे वाराणसी में ज्ञान वापी मस्जिद और मथुरा में शाही ईदगाह कृष्ण जन्मभूमि। कोर्ट ने साफ कर दिया है कि ऐसे मामलों में न तो सर्वे के आदेश जारी किए जा सकते हैं और न ही कोई अंतरिम या अंतिम फैसला सुनाया जा सकता है।
मौलाना फरिश्ता ने कहा कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी पूजा स्थल कानून पर सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम फैसले का स्वागत किया है। यह फैसला दिखाता है कि न्यायपालिका सांप्रदायिक मुद्दों को सुलझाने के लिए निष्पक्ष रूप से काम कर रही है।
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने हाउस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को बरकरार रखते हुए जो फैसला सुनाया है, उससे देश में कानून-व्यवस्था बहाल करने में मदद मिलेगी।
मौलाना ने इस बात पर जोर दिया कि पिछले कुछ वर्षों में निचली और ऊंची अदालतों के कुछ फैसलों से सांप्रदायिकता बढ़ी है। ऐसे फैसले न केवल न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाते हैं बल्कि देश के विकास और समृद्धि को भी प्रभावित करते हैं।
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उन सभी लोगों के लिए स्पष्ट संदेश है जो पूजा स्थलों की आड़ में झगड़े भड़काकर सांप्रदायिकता को बढ़ावा देना चाहते हैं।
कोर्ट ने केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर चार हफ्ते के भीतर अपना पक्ष रखने का आदेश दिया है, जबकि अन्य पक्षों को भी सरकार के हलफनामे पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए चार हफ्ते का समय दिया है।
अंत में मौलाना अली हैदर फरिश्ता ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों को धन्यवाद दिया और इस फैसले को एक ऐतिहासिक कदम बताया जो देश में शांति और न्याय की स्थापना के लिए एक मील का पत्थर साबित होगा। उन्होंने जनता से इस फैसले को सकारात्मक दृष्टि से देखते हुए सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देने की अपील की।
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